इस सूक्त के ऋषि नारायण, देवता आदित्य पुरुष और छन्द भूरिगार्षी त्रिष्टुप, निच्यृदार्षी त्रिष्टुप् एवं आर्ष्यनुष्टुप् है। इस सूक्त में मात्र 6 ही मन्त्र हैं। शुक्ल यजुर्वेद में पुरुष सूक्त के १६ मन्त्रों के अनन्तर इसके 6 मन्त्र प्राप्त होते हैं। इसे “उत्तर नारायण सूक्त” के नाम से भी जानते है। इसमें सृष्टि के विकास के साथ ही व्यक्ति के कर्तव्यो का बोध हो जाता है, साथ ही आदिपुरुष की महिमा का भी पता चलता है। इसकी विशेषता यह है कि इसके मन्त्रों को जो भी जानता है उसके वश में सभी देवता रहते हैं।
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अद्भ्यः सम्भृतः पृथिव्यै रसाच्च विश्वकर्मणः समवर्तताग्रे।
तस्य त्वष्टा विदधद्रूपमेति तन्मर्त्यस्य देवत्वमाजानमग्रे॥१॥
वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।
तमेव विदित्वाति मृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय॥२॥
प्रजापतिश्चरति गर्भे अन्तरजायमानो बहुधा वि जायते।
तस्य योनिं परि पश्यन्ति धीरास्तस्मिन् ह तस्थुर्भुवनानि विश्वा॥३॥
यो देवेभ्य आतपति यो देवानां पुरोहितः।
पूर्वो यो देवेभ्यो जातो नमो रुचाय ब्राह्मये॥४॥
रुचं ब्राह्मं जनयन्तो देवा अग्रे तदब्रुवन्।
यस्त्वैवं ब्राह्मणो विद्यात्तस्य देवा असन् वशे॥५॥
श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम्।
इष्णन्निषाणामुं म इषाण सर्वलोकं म इषाण॥६॥ (शु० यजुर्वेद)
॥ इति नारायण सूक्तम् संपूर्णम् ॥
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